लेखनी कविता - अपलक जगती हो एक रात- जयशंकर प्रसाद

42 Part

39 times read

0 Liked

अपलक जगती हो एक रात- जयशंकर प्रसाद अपलक जगती हो एक रात!  सब सोये हों इस भूतल में,  अपनी निरीहता संबल में,  चलती हों कोई भी न बात!  पथ सोये हों ...

Chapter

×